गर्दन में दर्द होने के क्या है लक्षण, कारण और उपचार ?

गर्दन में दर्द का होना व्यक्ति के लिए काफी परेशानियां खड़ी कर सकता है। इसके अलावा गर्दन पर हमारा पूरा सिर का भार टिका हुआ होता है अगर इसमें परेशानी आई तो व्यक्ति के लिए काफी परेशानियां खडी हो सकती है। तो वही गर्दन में दर्द के कारण और लक्षण क्या है और इसके दर्द से हम कैसे खुद का बचाव कर सकते है, इसके बारे में भी बात करेंगे, इसलिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े ;

गर्दन में दर्द की समस्या के कारण क्या है ?

  • एक्सीडेन्ट, गिरने या खेलते समय गर्दन में झटके का लगना, या माशपेशियों संबंधित लिगामेन्ट्स अपनी सामान्य सीमा से बाहर निकल जाए तो गर्दन में दर्द को उत्पन्न करते हैं।
  • यदि किसी व्यक्ति के मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या आ रही है, तो इस कारण भी गर्दन में दर्द महसूस किया जा सकता है।
  • तनाव को भी गर्दन में दर्द की वजह माना जाता है।
  • मैनिंजाइटिस, कैंसर, और गठिया जैसी कई बीमारियाँ भी गर्दन के दर्द के कारणों में से एक हो सकती है।

यदि आपके गर्दन में दर्द की समस्या है तो इससे बचाव के लिए आपको बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट लुधियाना से सलाह लेनी चाहिए।

गर्दन में दर्द की समस्या क्या है ?

  • गर्दन का दर्द, जिसे सर्वाइकलगिया भी कहा जाता है।
  • गर्दन में दर्द व्यक्ति के लिए काफी परेशानियां खडी कर सकता है जिस वजह से उसके रोजाना के काम में काफी रुकावट आ सकती है। इसके अलावा गर्दन में दर्द आपके पूरे शरीर में फैल कर, आपके कंधों, बाहों और छाती को प्रभावित कर सकता है।

गर्दन में दर्द होने के लक्षण क्या है ?

  • झुनझुनापन का महसूस होना।
  • गर्दन या शरीर के किसी एक हिस्से का सुन्न होना।
  • गर्दन मोड़ने या घुमाने में कठिनाई का सामना करना।
  • गर्दन में तेज दर्द।
  • ख़ाना निगलने में दिक़्क़त का सामना करना।
  • पेट भरे रहने का एहसास रहना।
  • सिर में सरसराहट की आवाज का आना।
  • गर्दन और सिर में स्पंदन का महसूस होना आदि।

गर्दन में दर्द की समस्या गंभीर बनती जा रही है तो इससे निजात पाने के लिए आपको बेस्ट न्यूरोसर्जन लुधियाना का चयन करना चाहिए।

गर्दन में दर्द से निजात दिलवाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल ?

  • जहां गर्दन का दर्द व्यक्ति के लिए काफी परेशानियां खडी करता है, वही इस दर्द की समस्या से व्यक्ति खुद को कैसे बाहर निकाले इसके बारे में भी वो सोचते है तो अगर आप भी चाहते है की आपको भी गर्दन में दर्द की समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिल सके तो इसके लिए आपको न्यूरो सीटी हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए।

गर्दन में दर्द से निजात दिलवाने का उपचार ?

  • डॉक्टर गर्दन में सूजन और दर्द को कम करने के लिए कुछ दवाइयाँ आपको लिख सकते है। वही मांसपेशियों को आराम देने के लिए मसल रिलक्सेंट भी कारगर होती हैं।
  • ट्रांसक्यूटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेशन (TENS) इसमें दर्द पैदा करने वाली नसों के करीब की त्वचा पर निम्न स्तर के विद्युत प्रवाह को लगाया जाता है, जिससे दर्द के संकेतों को रोका जा सके।
  • फिजियोथेरेपी, जैसे सर्वाइकल आइसोमेट्रिक व्यायाम गर्दन में टेंडन और मांसपेशियों को मजबूत करती हैं जिससे गर्दन के दर्द से भी राहत मिलती है।
  • ट्रैक्शन का उपयोग करके गर्दन के दर्द में भी राहत मिलती है।
  • दर्द ज्यादा गंभीर होने पर सर्जरी का उपयोग किया जाता है।

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    बच्चों को अस्थमा होने के मुख्य कारण क्या है ? जाइये एक्सपर्ट्स से कैसे करे बचाव

    बढ़ते प्रदुषण और अन्य कई कारणों से अब अस्थमा जैसी बीमारी के मामले बच्चों में भी पाए जा रहे है | बचपन में होने वाले अस्थमा की समस्या से  फेफड़ो और वायुमार्ग का कुछ ख़ास ट्रिगर्स के संपर्क पर जाते है, जिससे यह आसानी से सूज जाते है | ऐसे ट्रिगर्स की समस्या में पराग को अंदर लेने, सर्दी लगना या फिर अन्य श्रवसन संक्रमण शामिल होते है | बच्चों में अस्थमा की समस्या होने के कारण, उनके रोज़ाना होने वाले कार्य करने में भी बाधा डाल सकता है, जैसे की खेल-कूद के दौरान, स्कूल के दौरान या फिर नींद के दौरान भी खलल पड़ सकता है | 

    न्यूरो सिटी हॉस्पिटल के सीनियर डॉक्टर विकेश गुप्ता ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो के माध्यम से इस बात का जाहिर किया की आज के दौर में बच्चे भी अस्थमा की समस्या से जूझ रहे है | बचपन में होने वाले अस्थमा बालिगों को होने वाले समस्या की तरह होते है,लेकिन बच्चों को खासकर इस समस्या से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ जाता है | कभी-कभी यह स्थिति आपातकालीन विभाग में जाने, हॉस्पिटल में भर्ती होने और स्कूल न जाने की मुख्य वजह बन सकती  है | आइये जानते है इसके मुख्य लक्षण क्या है :- 

    • मुख से सांस को छोड़ते समय सिटी या फिर घरघराहट जैसे आवाज़ आना | 
    • सांस लेने में परेशानी होना | 
    • छाती में जमाव या फिर जकड़न जैसा महसूस होना | 
    • सुबह उठने के तुरंत बाद खांसी का लगातार होना | 
    • खेलने और व्यायाम के दौरान सांस लेने तकलीफ होना | 
    • हर समय थकान महसूस होना, जो की नींद पूरी न होने के कारण हो सकती है | 

     

    हर बच्चे में अस्थमा के लक्षण अलग-अलग तरह के होते है, जो समय के साथ-साथ बेहतर भी हो सकते और स्थिति बिगड़ भी सकती है | लेकिन इस बात का पता करना थोड़ा मुश्किल हो  जाता है की आपके बच्चे के लक्षण अस्थमा होने का कारण है की नहीं | अगर आपको संदेह हो रहा की कही आपके बच्चे को अस्थमा की समस्या तो नहीं, इसका पता करने लिए आप अपने बच्चे को स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के पास ले जाये ताकि समय से पहले प्रारंभिक उपचार से इन लक्षणों को नियंत्रित करने और अस्थमा के हमले को रोकने में मदद मिल सके | 

    यदि आपका बच्चा भी अस्थमा की समस्या से जूझ रहा है तो बेहतर है की आप डॉक्टर के पास जाएं और इस समस्या का अच्छे से इलाज करवाएं | इसके लिए आप न्यूरो सिटी हॉस्पिटल से परामर्श भी कर सकते है, इस संस्था के डॉक्टर विकेश गुप्ता पुलमोनोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट्स है, जिनकी मदद से आप अस्थमा जैसी बीमारी से छुटकारा पा सकते है |    

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      उच्चे तकिये में सोने की आदत पड़ सकती है भारी, जानिए क्या है इससे नुकसान

      एक आरामदायक नींद के लिए सोने के समय तकिया का होना काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सीधे हमारे नींद की गुणवत्ता में प्रभाव डालते है | कई लोगों को नीवें तकिये में सोने की आदत होती है और कई लोगों को उचे तकिये में सोना पसंद करते है | लेकिन क्या आपको यह पता है की उचे तकिये में सोने से आपके शरीर को काफी नुकसान पहुंच सकता है | आइये जानते है इसके दुष्प्रभाव के बारे में :- 

      1. गर्दन के दर्द होना या फिर नस चढ़ना :- उचे तकिये का लगातार उपयोग करने से गर्दन में दर्द होने लगता है जिसकी वजह से नस चढ़ जाता है और इसी के साथ आपके गर्दन के मांसपेशियों में काफी तनाव भी बढ़ जाता है |
      2. नींद पूरी न होना :- उचे तकिये के उपयोग से आपकी नींद की गुणवंता पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव डलता है, जिसकी वजह से आप सही समय पर सोने और उठने में काफी दिक्कतों का सामना करते है | 
      3. साइनस सिरदर्द की समस्या रहना :- उचे तकिये के इस्तेमाल से नाक बंद हो जाने की समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिससे साँस लेने में तकलीफ होती है और साइनस जैसे सिरदर्द का सामना करना पड़ता है | 
      4. पीठ में दर्द रहना :- लगातार उचे तकिये में सोने से स्पाइनल कॉर्ड में कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती है, जिसकी वजह से आपके पीठ में काफी तनाव डाल सकता है और गंभीर दर्द का कारण भी बन सकता है | 
      5. माइग्रेन की समस्या :- उचे तकिये में सोना आपके माइग्रेन की समस्या को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि यह आपके सिर  को अनुचित धारणा करता है जिससे सिरदर्द बढ़ जाता है | 

      कई लोग इन समस्याओं के बावजूद भी उचे तकिये में सोना पसंद करते है | यदि आप उचे तकिये के उपयोग से कई दिक्कतों का सामना कर रहे है तो आपको डॉक्टर से परामर्श करनी चाहिए | इसके लिए आप न्यूरो सिटी हॉस्पिटल का चयन कर सकते है | यहाँ के डॉक्टर अरुण कुमार धुनका न्यूरोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट्स है जो उचे तकिये के उपयोग से हो रहे समस्या को कम करने में सहायता कर सकते है |

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        जानिए माइग्रेन और साइनस में अंतर क्या है ?

        आज के दौर में सिरदर्द एक ऐसी परेशानी है,जो कई गंभीर समस्याओं या फिर वायरल इन्फेक्शन जैसे संक्रमणों का संकेत होता है | हालाँकि जिस तरह सिरदर्द होने के कारण अलग-अलग होते है, उसी तरह से सिरदर्द भी कई प्रकार के होता है | आइये जानते है ऐसे ही दो तरह के सिरदर्द माइग्रेन और साइनस सिरदर्द के बारे में :- 

        माइग्रेन और साइनस सिरदर्द में क्या अंतर है ? 

        माइग्रेन:- यह सिरदर्द ऐसा होता है जिसमे सिर के एक तरफ तेज़ धड़कन होता है जिसकी वजह से सिर के एक तरफ सुनसुनी हो जाती है और साथ ही मल्ती, उलटी, प्रकाश और ध्वनि से सवेदनशील होने लगता  है | आइये जानते है इसके मुख्या कारण :- 

        • स्ट्रेस लेना 
        • कुछ दवाओं के साइड इफ़ेक्ट 
        • नींद पूरी न होना 
        • हार्मोन में परिवर्तन आना    
        • समय पर भोजन न करना 
        • नशीली पदार्थों का सेवन करना 

        साइनस:- यह सिरदर्द तब होता है जब आपके आंखे के पीछे , गले ही हड्डियां, माथे और नाक के पुल में सुस्त दर्द महसूस होता है | यह सिरदर्द साइनस संक्रमण से उत्पन्न होती है, जिसके मुख्य लक्षण है, कोल्ड होना, किसी तरह की एलर्जी, हाई फीवर इत्यादि | 

        माइग्रेन और साइनस सिरदर्द में समानता:-  माइग्रेन और साइनस के लक्षण काफी हद तक एक समान होते है, इसी वजह से लोगो को  इन दोनों सिरदर्द में कन्फूशन रहता है,, इसके समानताएं लक्षण है, बहती नाक, नाक का बंद होना, गीली आँखों का होना आदि | 

        अगर आप भी इस तरह के लक्षणों से गुजर रहे है तो बेहतर है की आप एक्सपर्ट्स से राय  ले | अगर आप इस समस्या का जल्द से जल्द इलाज करवाना चाहते हो तो आप न्यूरो सिटी हॉस्पिटल का चयन कर सकते हो | यहाँ के सीनियर डॉक्टर एस.के.बंसल न्यूरोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट है |   

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          मिर्गी के दौरे से जुड़े आठ ऐसे मिथ्स, जिसका जानना बेहद ज़रूरी है

          मिर्गी का अटैक या दौरे बहुत ही  खतरनाक बीमारी है, जिससे पीड़ित व्यक्ति का शरीर बुरी तरह से अकड़ जाता है और मुँह से झाग निकलने लग जाता है | हलाकि कई लोग इस दौरे को भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वास प्रक्रिया से भी जोड़ते है, जिसके कारण वह लोग मिर्गी से पीड़ित रोगी डॉक्टर के पास ले जाने के बजाये अन्धविश्वाश तांत्रिक या बाबाओं के पास ले जाना समझदारी मानते  है, उनका मानना यह होता है की मिर्गी पीड़ित पर कोई जिन या किसी चुड़ैल का साया आ गया है | इतना ही नहीं कई लोग मिर्गी पीड़ित रोगी को पागल तक करार देते है | कई लोग मिर्गी पीड़ित व्यक्ति को जुता सुंघा देते है या फिर मुँह में चाबी डाल देते है | आइए जानते है ऐसे ही कुछ मिर्गी के दौरे से जुड़े मिथ्स और फैक्ट्स जिसका जानना बेहद ज़रूरी है :- 

          मिथ्स 1. मिर्गी पीड़ित का मानसिक असंतुलन होता है 

          फैक्ट्स :-  यह बात बिल्कुल सच है , मिर्गी के दौरे व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर कर देता है, जिसकी वजह से कई तांत्रिक कोशिकाएं कमजोर हो जाते है | हालांकि शरीर के बाकी अंग सामान्य ही रहते है, उन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता | 

          लेकिन डॉक्टर स.के.बंसल, जो की न्यूरोसर्जरी एक्सपर्ट्स है उनका मानना है की  मिर्गी पीड़ित व्यक्ति को डॉक्टर के पास ले जाने में ही समझदारी है, क्योंकि यह दौरे मानसिक रूप से काफी हानि पहुंचा सकती है | आप इससे जुडी सलाह न्यूरोसिटी एक्सपर्ट टीम के डॉक्टर से भी ले सकती है, जो की न्यूरोलॉजी  स्पेशलिस्ट है |  

          मिथ्स 2. मिर्गी पीड़ित रोगी का शरीर ऐंठने लग जाता है 

          फैक्ट्स :-  मिर्गी के अटैक कई तरह के हो सकते है, हालांकि कई मामलों मिर्गी पीड़ित रोगी  का शरीर ऐंठने लगता है, परन्तु हर मामलो में ऐसा नहीं होता | 

          मिथ्स 3. क्या मिर्गी की बीमारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को जाती  है

          फैक्ट्स :-  यह मिथ्स बिलकुल सही नहीं है, मिर्गी के बीमारी व्यक्ति से मानसिक संतुलन पर निर्भर करता है | क्योंकि यह दौरे उसी व्यक्ति को आते है, जिसके मस्तिष्क पर पहले से ही चोट लगी हो | 

          मिथ्स 4. क्या मिर्गी के दौरे कभी भी आ सकते  है?

          फैक्ट्स :- मिर्गी की दौरे तभी आते है जब व्यक्ति  की नींद पूरी ना हो,नशीली पदार्थ जैसे की शराब,तम्बाकू या धूम्रपान का सेवन किया है, जिसके कारण मानसिक संतुलन में परिवर्तन आता है और इसी वजह से मिर्गी के अटैक आते है | 

          मिथ्स 5. क्या मिर्गी के रोगी दूसरे पर निर्भर होते  है ? 

          फैक्ट्स :-  यह मिथ्स बिल्कुल सही है, क्योंकि मिर्गी पीड़ित व्यक्ति के परिजन और दोस्तों को उनकी हालत को समझना बेहद ज़रूरी है, जिससे उचित समय में मिले इलाज और सावधानियों से उन पर किसी भी तरह के  बुरा प्रभाव पड़ने से रोक सकती है |  

          मिथ्स 6 . क्या मिर्गी के रोगी को शादी नहीं करना चाहिए  ? 

          फैक्ट्स :-  यह मिथ्स बिल्कुल भी ठीक नहीं है, यह मामले सब से ज़्यादा महिलाओं में पाए जाते है | बल्कि उचित समय में इलाज से  मिर्गी पीड़ित व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सकता है | 

          मिथ्स 7 . क्या मिर्गी पीड़ित महिला गर्भवती नहीं हो सकती ? 

          फैक्ट्स:- मिर्गी के इलाज के लिए ले रही दवाइयां महिला की गर्भाशय को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता , गर्भ अवस्था में  भी डॉक्टर के द्वारा बताए गए या उनकी देखरेख पर भी दवाइयां ले सकती है |  

          मिथ्स 8 . क्या मिर्गी दौरे के समय रोगी को पकड़ लेना चाहिए ? 

          फैक्ट्स:- मिर्गी के दौरे पड़ रहे व्यक्ति को कभी भी पकड़ना या दबाना नहीं चाहिए , बल्कि इस बात का ध्यान रखना चाहिए क़ी आस पास कोई नुकीली वस्तु या हानिकारक पदार्थ न हो |

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            सावधानियों को ध्यान में रख कर हम ब्रेन स्ट्रोक की समस्या से कैसे बचे ?

            आधुनिक जीवन की तेज़-तर्रार लय में, स्वास्थ्य अक्सर पीछे छूट जाता है। हालाँकि, हमारी भलाई की उपेक्षा करने से गंभीर परिणाम हो सकते है, जिनमें से सबसे खतरनाक मस्तिष्क स्ट्रोक का खतरा है। अच्छी खबर यह है कि सरल लेकिन प्रभावी सावधानियां अपनाने से इस जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है, तो जानते है की वह सावधानियां कौन-सी जो हमें ब्रेन स्ट्रोक के खतरे से बचा सकते है ; 

            ब्रेन स्ट्रोक में किन सावधानियों का रखें ध्यान ?

            • सबसे पहले, स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखना मस्तिष्क स्ट्रोक को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नियमित व्यायाम, यहां तक कि दिन में 30 मिनट तक तेज चलना, रक्त परिसंचरण को बढ़ा सकता है और धमनियों को रुकावटों से मुक्त रख सकता है। व्यायाम वजन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है, जो स्ट्रोक की रोकथाम में एक और महत्वपूर्ण कारक है। फलों, सब्जियों और साबुत अनाज से भरपूर संतुलित आहार आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते है जो समग्र हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करते है।
            • रक्तचाप की निगरानी नियंत्रण सर्वोपरि है। उच्च रक्तचाप स्ट्रोक के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है, क्योंकि यह धमनियों पर अनावश्यक तनाव डालता है और उनके टूटने या रुकावट का कारण बन सकता है। नियमित जांच और निर्धारित दवाओं का पालन रक्तचाप को स्वस्थ सीमा के भीतर बनाए रखने में मदद कर सकता है।
            • इसी तरह, स्ट्रोक की रोकथाम के लिए कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रबंधित करना महत्वपूर्ण है। एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर धमनियों में प्लाक के निर्माण में योगदान कर सकता है, जिससे रक्त प्रवाह का मार्ग संकीर्ण हो जाता है। कम वसा वाला आहार अपनाने और संतृप्त और ट्रांस वसा के अत्यधिक सेवन से बचने से कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने और स्ट्रोक के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।

            ब्रेन स्ट्रोक में और क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन जरूर से करना चाहिए।

            स्ट्रोक की रोकथाम कैसे करें ?

            • स्ट्रोक की रोकथाम में धूम्रपान छोड़ना एक अपरिहार्य कदम है। धूम्रपान न केवल रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है बल्कि रक्त के थक्कों की संभावना को भी बढ़ा सकता है। इस आदत को छोड़कर, व्यक्ति अपने समग्र स्वास्थ्य में उल्लेखनीय रूप से सुधार करते है और स्ट्रोक के जोखिम को कम करते है।
            • शराब का सेवन नियंत्रित करना एक और बुद्धिमानी भरी सावधानी है। जबकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि मध्यम शराब के सेवन से हृदय संबंधी लाभ हो सकते है, अत्यधिक शराब पीने से उच्च रक्तचाप हो सकता है और स्ट्रोक का खतरा हो सकता है। इसलिए, यदि शराब पीएं तो उसका सीमित मात्रा में आनंद लेना महत्वपूर्ण है।
            • तनाव प्रबंधन को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन यह अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दीर्घकालिक तनाव उच्च रक्तचाप और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं में योगदान कर सकता है। सरल विश्राम तकनीकें जैसे गहरी सांस लेना, ध्यान करना या शौक में शामिल होना तनाव के स्तर को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकता है और स्ट्रोक की रोकथाम में योगदान कर सकता है।
            • नियमित स्वास्थ्य जांच सिर्फ तबियत के लिए नहीं होती जब आप अस्वस्थ महसूस करते है। नियमित जांच से संभावित स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ने से पहले पहचानने और उनका समाधान करने में मदद मिलती है। रक्त परीक्षण, कोलेस्ट्रॉल जांच, और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के साथ जीवनशैली विकल्पों के बारे में चर्चा व्यक्तिगत स्ट्रोक जोखिम में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है और निवारक उपायों का मार्गदर्शन कर सकती है।

            स्ट्रोक की रोकथाम के बाद भी अगर आपकी समस्या ठीक न हो तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

            ब्रेन स्ट्रोक ठीक होने में कितना समय लगता है ?

            • ब्रेन स्ट्रोक की समस्या में मस्तिष्क तक ब्लड की सप्लाई करने वाली धमनियों में ब्लॉकेज हो जाता है और इसकी वजह से ब्लड फ्लो अधित होता है। 
            • ब्लड फ्लो रुकने पर ब्लड जमने लगता है और इसकी वजह से धमनियों में दबाव भी बढ़ता है। इसके कारण धमनियों डैमेज हो जाती है और ब्लीडिंग शुरु हो जाती है। 
            • इसकी वजह से मस्तिष्क तक रक्त का संचार नहीं हो पाता है। रक्त के और पोषक तत्वों के संचार के बिना ब्रेन टिश्यू, साथ ही कोशिकाओं को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसके कारण ब्रेन डेड की स्थिति पैदा हो जाता है।
            • ब्रेन स्ट्रोक एक इमरजेंसी स्थिति है, इस स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। इस समस्या में जरा सी चूक जानलेवा हो सकती है। आमतौर पर ब्रेन स्ट्रोक से मरीज को ठीक होने में महीने भर लग जाते है। 
            • वहीं मरीजों में ब्रेन स्ट्रोक की गंभीरता के आधार पर इसका रिकवरी टाइम अलग-अलग हो सकता है।

            ब्रेन स्ट्रोक के इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल ?

            ब्रेन स्ट्रोक की समस्या काफी खतरनाक मानी जाती है, तो अगर आप इस तरह की समस्या से निजात पाना चाहते है तो इसके लिए आपको न्यूरो सिटी हॉस्पिटल का चयन जरूर करना चाहिए।   

            निष्कर्ष :

            स्वस्थ और स्ट्रोक-मुक्त जीवन की इस यात्रा में रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर की निगरानी करना, धूम्रपान छोड़ना, शराब का सेवन कम करना और नियमित स्वास्थ्य जांच में भाग लेना आवश्यक कदम है। याद रखें, ये सरल सावधानियां आपका कल्याण कर सकती है, जो आपके और मस्तिष्क स्ट्रोक की संभावित तबाही के बीच खड़े है।

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              जानिए इंसानी दिमाग में उपजे कीड़े का कैसे करें इलाज ?

              दिमाग में कीड़े का उत्पन्न होना काफी बड़ी समस्या है, दिमाग में कीड़े होने की बीमारी को न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस भी कहते है। और ये कीड़ा कैसे क्यों और किन कारणों से हमारे दिमाग में उत्पन्न होता है और साथ ही क्या इसका इलाज मिलना संभव है या नहीं इसके बारे में आज के लेख में चर्चा करेंगे ;

              क्या है दिमागी कीड़ा ?

              • दरअसल दिमागी कीड़ा या यह बीमरी एक इन्फेक्शन है, जो तब होता है जब हमारे शरीर में टीनिया सोलियम परजीवी का लार्वा या अंडे हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते है। 
              • सरल भाषा में कहें तो जब कोई व्यक्ति टेपवर्म के अंडे निगल लेता है, तो यह न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस संक्रमण का कारण बनता है। ये अंडे मांसपेशियों और मस्तिष्क के टिशू में घुस जाते है और वहां सिस्ट का निर्माण करते है। 
              • जब ये अंडे मस्तिष्क में सिस्ट बना देते है, तो इससे न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस की स्थिति पैदा हो जाती है।

              दिमाग में कीड़े के उत्पन्न होने के क्या कारण है ?

              • ‌‌‌दिमाग के अंदर कीड़े पड़ने का प्रमुख कारण, अशुद्व भोजन को खाना या आमतौर पर अशुद्व फल और सब्जी को खाना है। वहीं आपको बता दे की इन अशुद्ध भोजन और फल के साथ टेपवर्म के कीड़े चिपके होते है, जो हमारे पेट के अंदर सबसे पहले एंटर करते है और उसके बाद रक्तवाहिनी के सहारे हमारे दिमाग तक कूंच करते है।
              • यदि आप चाहते है की आपके दिमाग में टेपवर्म के कीड़े न उपजे तो इसके लिए आपको ‌‌‌दूषित पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। 
              • ‌‌‌फल और सब्जियों का सेवन बिना धोए करने से भी आपके दिमाग में ये कीड़े उत्पन्न हो जाते है। 
              • यदि आप किसी ‌‌‌संक्रमित व्यक्ति के साथ रहते है तो भी इस कीड़े के उत्पन्न होने के काफी चान्सेस है। 
              • ‌‌‌बिना हाथ धोए भोजन करने से भी ये कीड़े उत्पन्न होते है। 
              • ‌‌सूअर और अन्य जानवरों का मांस खाने से भी ये कीड़े आपके दिमाग में जन्म लेने लगते है।

              अगर उपरोक्त कार्य करने की वजह से आपके दिमाग में भी कीड़ा उत्पन्न हो गया है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

              क्या है टेपवर्म का कीड़ा ?

              • टेपवर्म कीड़े की बात करें तो ये एक तरह का पैरासाइट है, जो अपने पोषण के लिए दूसरों पर आश्रित रहने वाला जीव है। इसलिए ये शरीर के अंदर पाया जाता है, ताकि उसे खाना मिल सके। 
              • वहीं इसमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती है। साथ ही इसकी 5000 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती है। ये एक मिमी से 15 मीटर तक लंबे हो सकते है।

              इलाज क्या है दिमाग में उत्पन्न हुए कीड़े का ?

              • अगर आप समय रहते न्यूरोसिस्टीसर्कोसिस के लक्षणों को पहचानकर एक अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करते है, तो आप इस इन्फेक्शन से आसनी से छुटकारा पा सकते है। वहीं जब आप डॉक्टर के पास जाते है, तो वह मस्तिष्क में सिस्ट की जांच के लिए कुछ सरल टेस्ट का सुझाव दे सकते है। 
              • आमतौर पर दिमाग में कीड़े का पता लगाने के लिए डॉक्टर के द्वारा MRI या CT ब्रेन स्कैन कराने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में संक्रमण के निदान के लिए कुछ ब्लड टेस्ट भी किये जाते है, लेकिन संक्रमण हल्का होने पर स्पष्ट रूप से इन टेस्ट से पता नहीं चल पाता है। इसलिए ब्रेन स्कैन टेस्ट की सलाह अधिक दी जाती है।
              • एक बार दिमाग में कीड़े का निदान होने के बाद डॉक्टर इलाज के लिए आपको कुछ दवाएं दे सकते है, जिनमें एंटी-पैरासिटिक दवाइयां होती है।
              • हालांकि, स्थिति गंभीर होने पर कुछ मामलों में डॉक्टर सर्जरी की मदद से भी सिस्ट को हटा सकते है। लेकिन आमतौर पर डॉक्टर दवाओं की मदद से ही सफलतापूर्वक इसका इलाज करने में सक्षम होते है। 

              कुछ मामलों में दिमाग में उत्पन्न हुए कीड़े की सर्जरी की जाती है अगर आपको भी सर्जरी करवाने की सलाह डॉक्टर दे रहें है, तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

              दिमागी कीड़े के इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

              आप दिमागी कीड़े का इलाज न्यूरो सिटी हॉस्पिटल से भी करवा सकते है, बस इसके लिए आपको अपने रोग के लिए सतर्क होने की जरूरत है। 

              निष्कर्ष :

              दिमाग में उत्पन्न हुआ कीड़ा काफी खतरनाक होता है इसलिए जरूरी है की अगर आपको शुरुआती दौर में ही पता चल जाए तो इसके लिए आपको डॉक्टर के सम्पर्क में आना चाहिए।

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                क्या मिर्गी महिलाओं में गर्भावस्था को प्रभावित कर सकती है?

                एक वक्त में कहा जाता था कि मिर्गी से पीड़ित महिलाए, कभी माँ नहीं बन सकती। लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालांकि, अपने डॉक्टर के साथ विचार करने और योजना बनाने में कुछ चुनौतियां हैं। कुछ योजनाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मिर्गी से जुड़ी चुनौतियों का प्रबंधन करते हुए स्वस्थ गर्भावस्था भी संभव है। दौरे के संभावित प्रभाव और उन्हें नियंत्रित करने के लिए दी जाने वाली दवाएँ गर्भावस्था के दौरान अनोखी चिंताएँ पैदा करती हैं। हर साल मिर्गी से पीड़ित महिलाओं में लगभग 24,000 बच्चे पैदा होते हैं – जिनमें से अधिकांश स्वस्थ होते हैं।

                कैसे मिर्गी गर्भावस्था को प्रभावित करती है ? 

                गर्भावस्था के दौरान दौरे पड़ने पर निम्नलिखित समस्याओं का खतरा होता है:

                • भ्रूण की हृदय गति धीमी होना 
                • भ्रूण को ऑक्सीजन मिलना कम हो गया
                • अपरिपक्व प्रसूति
                • जन्म के समय कम वजन
                • समय से पहले जन्म
                • माँ को आघात, जैसे कि गिरना, जिससे भ्रूण को चोट लग सकती है, गर्भाशय से नाल का समय से पहले अलग होना (नाल का टूटना) या यहाँ तक कि भ्रूण की हानि भी हो सकती है

                दौरे पर नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान दौरे के परिणामस्वरूप चोट लग सकती है और जटिलताओं की संभावना बढ़ सकती है। जटिलताएँ उत्पन्न होने की संभावना दौरे के प्रकार और आवृत्ति से जुड़ी होती है। फोकल दौरे में सामान्यीकृत दौरे जितना जोखिम नहीं होता है (लेकिन फोकल दौरे सामान्यीकृत हो सकते हैं)। सामान्यीकृत दौरे (विशेष रूप से टॉनिक-क्लोनिक वाले) माँ और बच्चे दोनों के लिए अधिक जोखिम रखते हैं।

                 

                क्या मिर्गी माँ से पैदा होने वाली संतान में जा सकती है ?

                अगर माँ को मिर्गी की दिक्कत होगी और बाप को नहीं, तो तब भी १०० में से ५ खतरे का संकेत होगा। लेकिन दोनों को मिर्गी होनी बच्चे के लिए उच्च खतरा है। अक्सर बच्चे माता-पिता से मिर्गी विरासत में नहीं मिलेगी, लेकिन कुछ प्रकार की मिर्गी विरासत में मिलने की संभावना अधिक होती है।

                लेबर और बच्चे की डिलीवरी के समय अगर दौरे शुरू हो जाए, इसे अंतःशिरा दवा से रोका जा सकता है। यदि दौरा लंबे समय तक रहता है, तो आपका स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता सी-सेक्शन द्वारा बच्चे को जन्म दे सकता है। ज्यादातर लोग जिनको मिर्गी की दिक्कत होती है बिना किसी समस्या के बच्चा आसानी से हो जाता है। हम महिलाओं से न्यूरल ट्यूब दोष के जोखिम को कम करने के लिए गर्भधारण से पहले फोलिक एसिड अनुपूरक लेने का आग्रह करते हैं, जो मस्तिष्क, रीढ़ और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करते हैं। मिर्गी से पीड़ित महिलाओं को अन्य महिलाओं की तुलना में अधिक फोलिक एसिड लेने की आवश्यकता हो सकती है – गर्भधारण से पहले दो से तीन महीने तक प्रतिदिन 4 मिलीग्राम तक। ऐसा इसलिए है क्योंकि मिर्गी-रोधी दवाएं (एईडी) शरीर में फोलिक एसिड के स्तर को कम कर सकती हैं। आपके 20-सप्ताह के अल्ट्रासाउंड के दौरान, हम उन विकृतियों की तलाश करेंगे जो एईडी के कारण हो सकती हैं। यह परीक्षा न्यूरल ट्यूब दोषों की तलाश के लिए प्रभावी है।

                मिर्गी और गर्भावस्था के जोखिमों को सुरक्षित रूप से कैसे प्रबंधित करें ?

                • याद से दवा- बूटी ली जाए 

                अपनी पूरी गर्भावस्था के दौरान बताई गई दौरे-रोधी दवाएं (एएसएम) लेती रहें। इससे आपको और आपके बच्चे के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलेगी।

                • महीने में सामान्य जांच 

                अपनी मिर्गी देखभाल टीम के साथ अपने एएसएम की मासिक स्तर-जांच शेड्यूल करने और आवश्यकता पड़ने पर खुराक समायोजित करने की योजना बनाएं। गर्भावस्था से पहले के आधारभूत स्तर को बनाए रखने के लिए अधिकांश एएसएम को गर्भावस्था के दौरान खुराक बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

                • नींद को अग्गे रखे 

                नींद की कमी कई लोगों के लिए दौरे का एक सामान्य कारण है, चाहे वे गर्भवती हों या नहीं। एक सुसंगत नींद योजना बनाने के लिए अपनी देखभाल टीम के साथ काम करें।

                • अपने दौरे आने को ट्रैक करें 

                अपनी जब्ती गतिविधि पर नज़र रखें। इसे अपनी गर्भावस्था और मिर्गी देखभाल टीमों के साथ अक्सर साझा करें। दौरे के मामूली लक्षण भी यह संकेत दे सकते हैं कि आपको दौरे पड़ने की संभावना बढ़ रही है।

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                  सिर दर्द के प्रकार और घरेलु उपायों को जानकर हम कैसे इससे छुटकारा पा सकते है ?

                  सिरदर्द एक आम बीमारी है जो हमारे दैनिक जीवन को बाधित कर सकती है। सिरदर्द के प्रकारों को समझना और सरल घरेलू उपचार अपनाने से दर्द और परेशानी को कम करने में मदद मिल सकती है। इस ब्लॉग में, हम विभिन्न प्रकार के सिरदर्द और प्रभावी घरेलू उपचारों का पता लगाएंगे, तो सिर दर्द से पाना है निजात तो लेख के साथ अंत तक बने रहें ;

                  सिर दर्द के प्रकार क्या है ?

                  तनाव वाला सिर दर्द –

                  तनावग्रस्त सिरदर्द अक्सर तनाव और चिंता के कारण होता है। उनमें लगातार, हल्का दर्द महसूस होता है, जो आमतौर पर सिर के दोनों तरफ महसूस होता है।

                  तनाव से होने वाले सिरदर्द को कम करने के लिए, व्यक्ति गहरी साँस लेने के व्यायाम और ध्यान जैसी विश्राम तकनीकों का अभ्यास कर सकते है। ये गतिविधियाँ तनाव को कम करती है और मांसपेशियों को आराम देती है, जिससे सिरदर्द से राहत मिल सकती है।

                  आधासीसी –

                  माइग्रेन तीव्र होता है और अक्सर मतली, प्रकाश और ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता जैसे लक्षणों के साथ होता है। वे आमतौर पर सिर के एक तरफ को प्रभावित करते है।

                  घर पर माइग्रेन का प्रबंधन करने के लिए, व्यक्ति आराम करने के लिए एक शांत, अंधेरा कमरा ढूंढ सकते है, माथे पर ठंडा सेक लगा सकते है और मतली और सूजन को कम करने के लिए अदरक की चाय पी सकते है।

                  क्लस्टर का सिर दर्द –

                  क्लस्टर सिरदर्द अविश्वसनीय रूप से दर्दनाक होते है और कुछ हफ्तों या महीनों की अवधि में समूहों में होते है, जिसके बाद सिरदर्द-मुक्त अंतराल होता है।

                  क्लस्टर सिरदर्द के दौरे के दौरान, शुद्ध ऑक्सीजन लेना फायदेमंद हो सकता है। ऑक्सीजन थेरेपी सिरदर्द की गंभीरता और अवधि को कम करने में मदद कर सकती है।

                  क्लस्टर सिर दर्द से राहत पाने के लिए लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लें। 

                  साइनस सिरदर्द –

                  साइनस सिरदर्द साइनस संक्रमण और एलर्जी से जुड़ा हुआ है। वे माथे, गाल की हड्डियों और नाक में दर्द का कारण बनते है।

                  साइनस सिरदर्द को कम करने के लिए, सेलाइन नेज़ल स्प्रे या नेति पॉट का उपयोग करने से जमाव को दूर करने और दबाव से राहत पाने में मदद मिल सकती है। साइनस सिरदर्द को कम करने के लिए भाप लेना एक और प्रभावी उपाय है।

                  कैफीन निकासी सिरदर्द –

                  कैफीन वापसी सिरदर्द अक्सर कैफीन सेवन में अचानक कमी से उत्पन्न होता है।

                  इन सिरदर्द को कम करने के लिए, कैफीन का सेवन अचानक बंद करने के बजाय धीरे-धीरे कम करें। हाइड्रेटेड रहने और पर्याप्त नींद लेने से भी इन सिरदर्द की तीव्रता कम हो सकती है।

                  निर्जलीकरण सिरदर्द –

                  अपर्याप्त तरल पदार्थ के सेवन से निर्जलीकरण सिरदर्द उत्पन्न होता है, जिससे मस्तिष्क अस्थायी रूप से सिकुड़ जाता है।

                  निर्जलीकरण सिरदर्द को रोकने और राहत देने के लिए, पूरे दिन खूब पानी पिएं और तरबूज और ककड़ी जैसे पानी से भरपूर फल और सब्जियां खाएं।

                  सभी प्रकार के सिर-दर्द के लिए घरेलू उपचार क्या है ?

                  जलयोजन : 

                  विभिन्न प्रकार के सिर-दर्द को रोकने के लिए पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड रहना आवश्यक है। इसलिए दिन में कम से कम 8 गिलास पानी जरूर पियें।

                  आराम : 

                  पर्याप्त आराम और नींद सिर-दर्द के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है।

                  संतुलित आहार : 

                  नियमित भोजन के साथ संतुलित आहार बनाए रखें। खाना छोड़ने से कुछ लोगों में सिर-दर्द हो सकता है।

                  ठंडी सिकाई करें : 

                  माथे पर ठंडी सिकाई करने से क्षेत्र को सुन्न करके और सूजन को कम करके त्वरित राहत मिल सकती है।

                  पेपरमिंट ऑयल : 

                  तनाव से होने वाले सिरदर्द को कम करने के लिए पेपरमिंट ऑयल को कनपटी पर ऊपर से लगाया जा सकता है।

                  अदरक की चाय का सेवन करें : 

                  अदरक में सूजनरोधी गुण होते है जो माइग्रेन के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते है।

                  अरोमाथेरेपी : 

                  लैवेंडर, पेपरमिंट, या नीलगिरी के आवश्यक तेलों की सुगंध सिरदर्द के दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकती है।

                  ट्रिगर से बचें : 

                  व्यक्तिगत सिरदर्द ट्रिगर को पहचानें और उनसे बचें, जिसमें कुछ खाद्य पदार्थ, पेय या पर्यावरणीय कारक शामिल हो सकते है।

                  इन खाने की चीजों को अपनाने के बाद भी आपको सिर दर्द की समस्या से राहत न मिले, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

                  सिर दर्द की समस्या से बचाव के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

                  अगर लगातार आप सिर दर्द की समस्या से परेशान है तो कृपया इसे नज़रअंदाज़ न करें बल्कि इसके इलाज के लिए आपको न्यूरो सिटी हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए। इसके अलावा अगर आप सामान्य सिर दर्द से परेशान है तो इसके इलाज में घरेलु उपाय काफी मददगार होते है, बसर्ते की आपको इसके इलाज के लिए घरेलु उपायों को काफी अच्छे से फॉलो करना है पर उपायों को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

                  सारांश :

                  सिरदर्द के प्रकारों को समझकर और सरल घरेलू उपचार अपनाकर, व्यक्ति सिरदर्द के दर्द को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और कम कर सकते है। चाहे यह तनाव वाला सिरदर्द हो, माइग्रेन हो, या कोई अन्य प्रकार हो, विश्राम तकनीकों, उचित जलयोव जन और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग दवा की आवश्यकता के बिना राहत लाने में मदद कर सकता है।

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                    मस्तिष्काघात जोकि हमारे दिमाग पर लगने वाली चोट की वजह से होती है, इसके कारण व्यक्ति को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वही मस्तिष्काघात होने पर हमे कौन-से प्राथमिक उपचार के बारे में पता होना चाहिए, इसके बारे में आज के आर्टिकल में चर्चा करेंगे तो अगर आप भी सामान्य चोट या किसी अन्य सिर दर्द की समस्या से परेशान है तो आर्टिकल के साथ अंत तक बने रहें ;

                    क्या होता है मस्तिष्काघात ?

                    • मस्तिष्काघात तब होता है जब सिर (चेहरे या गर्दन) या ऊपरी शरीर पर हल्की चोट लगने से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। सिर को जोर से हिलाने से भी मस्तिष्काघात हो सकता है।  
                    • आघात से मस्तिष्क की अस्थायी कार्यप्रणाली और वैकल्पिक मानसिक स्थिति का नुकसान होता है। यदि उपचार न किया जाए, तो यह पुरानी स्थिति शरीर व मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है।

                    दिमागी जाँच या मस्तिष्काघात के बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए।

                    मस्तिष्काघात या आघात के लक्षण क्या है ?

                    • भूलने की बीमारी या स्मृति हानि, जिसके परिणामस्वरूप उस घटना को भूल जाते हैं जिसके कारण मस्तिष्काघात हुआ था।
                    • सिरदर्द की समस्या। 
                    • मतली और उल्टी की समस्या। 
                    • कानों में आवाज का आना। 
                    • थकान और चक्कर आना। 
                    • धुंधली दृष्टि या देखने में परेशानी आ आना। 
                    • भ्रम की भावना का आना। 
                    • बोलने में देरी की समस्या।     
                    • चेतना का नुकसान होना। 
                    • चिड़चिड़ापन और व्यक्तित्व में अन्य परिवर्तन का आना। 
                    • नींद में परेशानी का सामना करना। 
                    • चीजों को भूल जाना। 
                    • प्रकाश या शोर संवेदनशीलता महसूस करना आदि।

                    यदि आपके दिमाग पर गहरा आघात हुआ है जिसकी वजह से आपको सर्जरी का सहारा लेना पड़े तो इसके लिए आप लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन कर सकते है।

                    मस्तिष्काघात या आघात के लिए कौन-सी प्राथमिक चिकित्सा का चयन करें ?

                    • जब किसी को सिर में चोट लगती है, तो हमेशा मान लेना चाहिए कि इससे मस्तिष्काघात हो सकता है। क्युकि ऐसा मान लेना से आप स्थिति को संभालने में सफल साबित होंगे। 
                    • इसके बाद आपको व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना चाहिए।
                    • यदि आप आघात के वक़्त गंभीर लक्षण देखते है, तो तत्काल आपको चिकित्सा सहायता का चयन करना चाहिए। 
                    • सुनिश्चित करें कि व्यक्ति सांस ले रहा है और उसे सांस लेने में कोई परेशानी नहीं हो रही है।
                    • वे सामान्य व्यवहार कर सकते है जैसे की उन्हें चोट लगा ही न हो। 
                    • पीड़ित को शराब न पीने दें।
                    • चोट लगने के बाद रोगी का निरीक्षण करें क्योंकि लक्षण देर से दिखाई दे सकते है।

                    मस्तिष्काघात होने पर डॉक्टर का चयन कब करना चाहिए ?

                    • जब होश 30 सेकंड से अधिक समय न आए। 
                    • तीव्र सिरदर्द जो समय के साथ बिगड़ जाता है। 
                    • नाक या कान से खून बहना या तरल पदार्थ का निकलना। 
                    • कानों में लगातार बजने जैसा कुछ सुनाई देना। 
                    • देखने में परेशानी का सामना करना। 
                    • भटकाव और भ्रम की समस्या आदि।

                    मस्तिष्काघात के जोखिम कारक क्या है ?   

                    • फ़ुटबॉल, बॉक्सिंग, रग्बी आदि जैसे उच्च जोखिम वाले खेल खेलते समय चोट का लगना।
                    • सही सुरक्षा उपकरण के बिना खेलते जाना। 
                    • शारीरिक शोषण का अनुभव करना या लड़ाई में शामिल होना। 
                    • अगर आप कार दुर्घटना या मोटरसाइकिल दुर्घटना से ग्रस्त है। 
                    • पिछला चिकित्सा इतिहास आघात के लिए महत्वपूर्ण है। 

                    सुझाव :

                    • अगर आपके सिर में गंभीर चोट लग गई है तो इससे बचाव के लिए आपको बिना समय गवाए न्यूरो सीटी हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए। 

                    निष्कर्ष :

                    • लक्षण ज्यादा गंभीर होने पर खुद से प्राथमिक चिकित्सा करने से बचे और समय रहते जोखिम हुए व्यक्ति को डॉक्टर के पास ले जाए।

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